कहते हैं जिसमें गुणखण्डों का आपस में गुणा करके मूल संख्या या मूल बहुपद प्राप्त किया जाता है।
4.
योगिनी की मूल संख्या आठ है यथा मंगला, पिंगला, धान्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा और संकटा।
5.
गुणनखण्ड की विपरीत क्रिया को विस्तार (expansion) कहते हैं जिसमें गुणखण्डों का आपस में गुणा करके मूल संख्या या मूल बहुपद प्राप्त किया जाता है।
6.
उपनिष्दों की मूल संख्या लग भग 108-200 तक थी, किन्तु यह मानव समाज का दुर्भाग्य है कि अधिकत्म उपनिष्दों को अहिन्दूओं की धर्मान्धता के कारण नष्ट कर दिया गया था।
7.
जैसे जैसे न्यायालय के कार्य में वृद्धि हुई और लंबित मामले बढ़ने लगे, भारतीय संसद द्वारा न्यायाधीशों की मूल संख्या को आठ से बढ़ाकर १९५६ में ग्यारह, 1960 में चौदह, 1978 में अठारह, 1986 में छब्बीस और 2008 में इकत्तीस तक कर दिया गया।